शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

       नाटक - 'होरी' देखने लायक प्रस्तुति..... 



    मुंशी प्रेमचंद की श्रेष्ठ कृतियों में से एक उपन्यास गोदान पर आधारित नाटक होरी भारतीय किसान की जीवन गाथा है। जिसके नाटककार विष्णु प्रभाकर हैं। 

निर्देशक - राजेश राजा 
     विश्वा पटना के द्वारा प्रस्तुत नाटक 'होरी', निर्देशक राजेश राजा के पिछले ३-४ सालों में प्रदर्शित नाटकों में सबसे बेहतर प्रस्तुति थी। निर्देशक के तौर पर राजेश राजा को पुनर्स्थापित करता हुआ यह नाटक दो भाइयों के प्रेम , द्वेष , होरी की गौ लालसा तथा सामाजिक कुरीतियों को मंच पर दिखाने में कामयाब रहा। साथ ही २ घंटा ३० मिनट के नाटक को एडिट कर १ घंटा २० मिनट में दिखाने को एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। (हालाँकि इस प्रयास में नाटक का कुछ भाग जीवंत होने से वंचित रह गया।) लेकिन इतने एडिटिंग के बावजूद भी निर्देशक महोदय ने बड़े चालाकी से दो सीन के गैप को एक टाइटल सांग के जरिये भरते गए। नाटक होरी का सेट बेहद साधारण किन्तु प्रभावशाली था। जो दर्शक को बिना उलझाये नाटक को नयनप्रिय बनाने में मददगार साबित हुआ। इनके नाटको में एक खास बात होती है जो इस बात की पुष्टि करती है की नाटक का निर्देशक राजेश राजा है, वो खास बात है- नाटक का टाइटल सांग। टाइटल सांग के मामले में निर्देशक महोदय बहुत ही सावधानी बरतते हुए कोई न कोई ऐसे ट्यून का इजाद कर ही लेते हैं जो कर्णप्रिय होने साथ - साथ दो दृश्य को बुनने का काम करता है और बुन्तर को सदैव अदृश्य रखता है। (जैसे आपने नाटक- बगिया बछराम की में भी देखा होगा।) फिर भी यह नाटक मुझे अभिनय प्रधान लगा। 

नाटक- होरी के एक दृश्य में जहांगीर खान व आदिल (बाएं से )
         नाटक होरी से अगर किन्हीं को लोकप्रियता हासिल हुआ तो वो हैं - प्रदीप्त मिश्रा (होरी) और संजना कुमारी (धनिया)। हालाँकि इस नाटक के दूसरे पात्र जैसे- दातादीन एवं गोबर के किरदार करने वाले अभिनेता क्रमशः आदिल एवं जहांगीर खान ने भी शानदार प्रदर्शन किया। इस बात में कोई शक नहीं की ये दोनों (आदिल एवं जहांगीर खान) अपने पीढ़ी के कुशल व् अनुभवी अभिनेता हैं। जिनके आकर्षक चरित्र रचना तथा अभिनय कुशलता का फायदा सदैव निर्देशक तथा सहकर्मियों को मिलता रहा है। 


नाटक- होरी के एक दृश्य में प्रदीप्त मिश्रा व संजना कुमारी 
जैसा की थिएटर यूनिट / विश्वा पटना की नीति रही है कि ज्यादा से ज्यादा नए चेहरे को मंच पर उतारना। ऐसे में नए / काम अनुभव वाले अभिनेता/अभिनेत्री को होरी एवं धनिया के लिए तैयार करना निश्चित रूप से निर्देशक महोदय के लिए चॅलेंजिंग रहा होगा। नाटक का पात्र धनिया जो सशक्त अभिनय की मांग करती है। और उसे पूरा करना नयी अभिनेत्री के लिए बहुत मुश्किल होता है।  लेकिन फिर भी संजना ने मंच पर संजना से धनिया तक पहुचने का ईमानदार प्रयास किया। जो पटना के रंग दर्शकों को बेहद पसंद आया और सराहा भी गया। दर्शकों का सराहना संजना को पटना रंगमंच की युवा पीढ़ी में अव्वल अभिनेत्री के रूप में पहचान करवाती रही जो इस नाटक की सफलता का सूचक है। इसी नाटक में ही प्रदीप्त मिश्रा (होरी) ने पटना रंगमंच को एक मुख्य पात्र करने लायक अभिनेता होने का संकेत दिया। होरी के किरदार को निभाने के लिए उनका मेहनत मंच पर साफ़ साफ़ देखा जा सकता था। चाहे वह दैहिक भाषा हो या संवाद अदायगी हो,प्रदीप्त मिश्रा हमेशा दोनों का सामंजस्य बैठने का प्रयत्न करते दिखे। लेकिन यह भी सच है की कभी - कभी होरी प्रदीप्त भी दीखा। लेकिन मंच पर ऐसा ज्यादा देर तक नहीं हुआ। खैर, आम दर्शकों को धनिया व होरी का प्रदर्शन ज्यादा भाया।


NOTE- यह लेख नाटक 'होरी' पर मेरे अपने विचार हैं। आपका भिन्न भी हो सकता है।