रंगमंच को गाली देने वाले रंगकर्मियों के खिलाफ -
मुझे बड़ा
आश्चर्य होता है
जब कोई रंगकर्मी
अपना प्रदर्शन करने
के बाद कॉलर
खड़ा कर प्रेक्षागृह
के बाहर स्टाइल
सिगरेट पीते हुए
लोगों की बधाइयों
के लिए पोज़
दिए खड़ा रहते
हैं, और अगर
आप उधर से
गुज़र रहे होते
हैं, तो आपको
बुलाकर सिगरेट तथा चाय
के लिए आमंत्रित
करते हैं, ताकि
आप उनके प्रदर्शन
की झूठी तारीफ
करें। खैर, हमें
इन बातों से
ऐतराज़ नहीं है
बस आश्चर्य होता
है।
मैंने पटना तथा
दिल्ली रंगमंच में रहते
हुए बहुत से
ऐसे लोगों को
भी झेला है
जिसकी कोई औकात
नहीं है। (काम
के आधार पर)
फिर भी वो
किसी भी बड़े
रंग विद्वानों की
आलोचना उनके व्यक्तित्व,
चरित्र तथा प्रेम
संबंधों के आधार
पर करते हैं
कहते - कहते यहाँ
तक कह देते
हैं कि- वो
रंग विद्वान दरअसल
बहुत
बड़ा अय्याश है,
तथा उनका रंगमंडल
/ रंगपरिवार अय्याशी का अड्डा।
जबकि उनके काम
के बारे में
चन्द शब्द भी
बोलने को नहीं
मिलता। शब्द कैसे
मिलेगा क्योंकि उनके काम
को देखने की
आदत तो भाई
साहब को है
हीं नहीं। उनका
कृतिमान, उनका सम्मान भाई साहब से हज़म हीं नहीं होता। महिला रंगकर्मियों के बारे में भाई साहब को कुछ ज्यादा ही पता होता है,चाहे वो कितनी भी बड़ी अभिनेत्री/निर्देशिका/रंगमहिला क्यों न हों। उनके व्यक्तिगत मामलों की खबर बड़ा जल्दी इन्हें मिल जाता है यहाँ तक की कोई नयी लड़की के आने के दूसरे दिन ही इन्हे पता चल जाता है कि उस लड़की का ४-५ प्रेमी हैं उसमे से २ या ३ के साथ उसका अबैध सम्बन्ध भी है। ये बात भले ही वो महिला नहीं जानती हो, पर भाई साहब को पूरा पता होता है।वाक़ई भाय साहब आप बहुते टैलेंटेड हैं, हम तो जानबे करते कि आप एक सधे हुए रंगकर्मी हैं, लेकिन कोय आपका टैलेंटबे नै पहचाना। कोय बात ने होता है - होता है। हमरा सहानुभूति आपके साथ है।
कृतिमान, उनका सम्मान भाई साहब से हज़म हीं नहीं होता। महिला रंगकर्मियों के बारे में भाई साहब को कुछ ज्यादा ही पता होता है,चाहे वो कितनी भी बड़ी अभिनेत्री/निर्देशिका/रंगमहिला क्यों न हों। उनके व्यक्तिगत मामलों की खबर बड़ा जल्दी इन्हें मिल जाता है यहाँ तक की कोई नयी लड़की के आने के दूसरे दिन ही इन्हे पता चल जाता है कि उस लड़की का ४-५ प्रेमी हैं उसमे से २ या ३ के साथ उसका अबैध सम्बन्ध भी है। ये बात भले ही वो महिला नहीं जानती हो, पर भाई साहब को पूरा पता होता है।वाक़ई भाय साहब आप बहुते टैलेंटेड हैं, हम तो जानबे करते कि आप एक सधे हुए रंगकर्मी हैं, लेकिन कोय आपका टैलेंटबे नै पहचाना। कोय बात ने होता है - होता है। हमरा सहानुभूति आपके साथ है।
- जरा सोचिये जब अपने ही लोग अपने ही लोगों के बारे में ऐसी राय बनाएंगे तो दुनिया हम पर क्यों न हँसे, हमें क्यों न गाली दे ? क्यों कोई माँ-बाप अपने बेटे-बेटियों को रंगमंच में आने की इज़ाज़त दे ?
Note - यह सारी बातें जो मैंने लिखी है वो मेरे व्यकिगत अनुभव के आधार पर हैं।
प्रिय विपुलजी,
जवाब देंहटाएंकोई भी विचार सन्दर्भ-विहीन नहीं होता | इस तरह की टिप्पणी का कोई विशेष अर्थ नहीं है !
रंगकर्मी भी इसी समाज का अंग है और समाज के विरोधाभासों का प्रभाव उस पर भी पड़ता है | आपने जिन भी 'वरिष्ठ रंगकर्मी' का ज़िक्र किया है, वैसे लोग हर क्षेत्र में आपको मिल जाएंगे | रंगमंच अपवाद नहीं है |
आप सकारात्मक बातें लिखें | ऐसी टिप्पणी या लेख - जिससे रंगमंच की प्रमुख समस्याओं के विषय में पाठक को आपके विचार से परिचित होने का अवसर मिले | निरर्थक वैयक्तिक बातों में अपनी ऊर्जा और समय नष्ट न करें |
एक बात और, व्याकरण और हिज्जे के प्रति भी सजग रहें |
बहुत कम ऐसे युवा रंगकर्मी हैं, जिनकी लिखने-पढ़ने में अभिरुचि है | आप इस दिशा में सक्रिय हैं, यह यह प्रशंसनीय है | इसी तरह लिखते रहें और ख़ूब पढ़ें |
शुभकामनाएँ !
- परवेज़ अख्तर |
सर, मैं आपकी बातों से सहमत हूँ तथा आपके सुझावों की इज़्ज़त करता हूँ। आगे से इन सारी बातों का ध्यान रखूँगा।
हटाएंटिप्पणी के लिए शुक्रिया !
Keep it up !
हटाएंविपुल जी मैं परवेज़ जी से सहमत हूँ। मनुष्य को अपना काम करना चाहिए ना । बहुत खुश हूँ मैं।
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