शुक्रवार, 3 नवंबर 2017



फिल्म      - रिबन                                       नज़रिया                                   भाषा - हिंदी 
निर्देशिका - राखी शांडिल्य                                                                              अवधि - 146 मिनट 




               उन दिनों मैं अपने दीदी और बहनोई के साथ दिल्ली में रहता था दीदी फैशन डिज़ाइनर हैं और बहनोई जी एक सॉफ्टवेयर कंपनी में मेनेजर, उनका एक बेटा है जो उन दिनों स्कूल के बाद डे केयर में रहता था  पता नहीं क्यों लेकिन फिल्म रिबन देखते ही सबसे पहले अपने भांजे की याद आई, जिसने अन्दर तक झकझोर दिया, जैसे किसी ने हसीन सपनो वाली नींद में सोये एक नौजवान पर बाल्टी भर ठंडा पानी डाल दिया हो  मैं फिल्म के शुरुआत से मध्यांतर तक लगातार कनफ्लिक्ट के बारे में सोच रहा था शायद बेचैनी थी कनफ्लिक्ट की । लेकिन कनफ्लिक्ट इतना भयावह होगा मैंने सोचा तक नहीं था, समाज का एक चेहरा इतना घिनौना और क्रूर है कि उसकी परछाई तक से रूह कांप जाता है ।  

                           वैसे तो किसी भी स्क्रिप्ट के मूलतः दो स्ट्रक्चर होते हैं लीनियर और नॉन-लीनियर, रिबन का प्लाट लीनियर है  लीनियर के साथ हमेशा ये संदेह लगा रहता है कि लोगों को आगे की कहानी का अंदाज़ा लग जाता है लेकिन इसे राइटर की चतुराई या डेप्थ कहा सकता है कि कहानी के अगले सीन का अंदाज़ा आपका सरासर गलत हो जाता है  और आपको लगता है, एक पल में ऐसा क्यों हो गया यार ? ये तो नहीं होना था  रिबन की कहानी बिलकुल आपकी कहानी है जिसे आप कहीं से भी खुद को जोड़ कर महसूस कर सकते हैं शायद यही एक वजह है जो कहानी के शीर्षक को सार्थक करता है । अगर कहानी को स्ट्रक्चरल और इन्टेलेक्चुअल लेवल पर देखें तो कहानी का थीम, सब्जेक्ट, और मैसेज क्लियर और एंटरटेनिंग होनी चाहिए  रिबन इस पैमाने पर बिलकुल खरा उतरता है । 
                 फिल्म के फ्रेम और सेटिंग की बात करें तो पहले शॉट जिसे ट्रेलर में भी दिखाया गया है । जहाँ सुहाना अपने प्रेगनेंसी की बात एक आधा बने हुए ईमारत के छठे मंजिले छत पर अपने पति करण से करती है, ये छठा मंजिल कहीं न कहीं सुहाना के सक्सेस के आखरी पड़ाव को डिनोट करती है । जिसे पता है कि अगर प्रेगनेंट हुयी तो ये करियर की ईमारत इसी तरह अधूरी रह जाएगी । ये एक छोटा सा एक्साम्पल दिया मैंने  आप जब फिल्म देखेंगे तो शायद आपको ऐसे कई एक्साम्पल्स मिलेंगे  इसके अलावा फिल्म की कास्टिंग जिसने भी की है वो सलाम के हक़दार हैं 
              एक्टिंग की बात करें तो सबसे पहले आशी को सलाम इस बच्ची के डायलाग डिलेवरी का मुरीद हूँ मैं  कल्की कोचालिन अपने जबरदस्त फॉर्म में हैं जिसने कई बार अपने अभिनय से हमें चौंका दिया, एक एक्टर जब एक ही किरदार में 3 - 4 किरदार अदा करने लगे तो हैरानी तो होगी ही  पता ही नहीं चलता कि कब पत्नी से माँ और माँ से एक एम्प्लोय बन जाती हैं एक ही शॉट में पति से झगडा और बच्ची से प्यार ये तो एक सधी हुयी अभिनेत्री ही कर सकती हैं  सुमित व्यास इतने सहज तरीके से एक पिता को जिया है कि उनकी बेबसी सीधा दर्शक के दिल को छू जाती है  इसके अलावा एक किरदार बाई जिसने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी, उनकी बात न करना शायद बेमानी होगी  इन सब किरदारों के बीच के सामंजस बनाने में निर्देशक के द्वारा दिया गया मोटिवेशनल यूनिट बहुत ही क्लीन है जो दो सीन के बीच जम्प नहीं आने देता है 

सबसे खास बात कि कहानी एक मैसेज छोडती है जो कहीं न कहीं समाज के हर तबके को सचेत करती है साथ ही एक दाम्पत्य जीवन को जीवंत करती है । रिबन उन फिल्मों में से है जिसे हर इन्सान को देखना चाहिए । कहने को तो बहुत कुछ है शायद आर्टिकल बड़ा न हो जाये इस डर से...

रिबन की पूरी टीम को बधाई । बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के लिए शुभकामना || 


                                                                                                                विपुल आनंद 
                                                                                                             अभिनेता, रंगकर्मी 
                                                                                                         संपर्क - 09110922881

शनिवार, 27 मई 2017



फ़रेबी आँखें @ CUJ

उस दिन विश्वविद्यालय में हमारा आखिरी दिन था मतलब हम उस दिन के बाद विश्वविद्यालय के छात्र नही रहेंगे। हमारा फेयरवेल हो चुका था, फिर मिलने के कसमें-वादे पूरे हो चुके थे, सर-मैम सबका आशीर्वचन मिल चुके थे, हमारा विश्वविद्यालय पहचान पत्र हमसे वापस ले लिया गया था, हम अपना यूनिफार्म धुलवाकर बैग में रख चुके थे, हम ग्रुप फोटो, सेल्फी फेसबुक-व्हाट्सएप्प पर डाल चुके थे, कुछ लोग अपने बिछड़ने का गम मना रहे थे कुछ मन-ही-मन अपनी नयी उड़ान का जश्न। मेरे साथ भी वैसा ही कुछ हो रहा था लेकिन मैं बेहद संघर्ष के बाद अपने आपको सम्हाले हुए था ताकि लोगों को लगे की मैं कितना अन्दर से मजबूत हूँ। शायद ख़ुद को बता रहा था कि देख मैं कितना बेहतरीन अभिनेता हूँ जो दिल के फफक-फफक के रोने के बाद भी अपने होठों और चेहरे को बयां करने की इज़ाजत नहीं दे रहा। कितनी कठिनाई से वो मुस्कान लाया था उस वक्त, जब मेरी मित्र मंडली के कई करीबियों ने कहा कितुम बहुत कम दिन रहे कैंपस में और प्रैक्टिकल भी हो इसलिए छोड़ने का मोह नहीं हो रहा तुम्हें

           मैं उनको कैसे समझता मेरे और विश्वविद्यालय की मोहब्बत को (जिसकी तीव्रता मुझे अब ज्ञात हो रहा जो निरंतर बढ़ता ही जा रहा)। कैसे परिभाषित करता उस अभिमान को जो वहाँ के वातावरण ने दिया, कैसे परिभाषित करता उस आत्मविश्वास को जो मुझे खुद से परिचय करवाया, कैसे भूल सकता हूँ उन गुरुजनों पदाधिकारियों को जो मेरा नामबी.डी. कपूरजानते हैं, नहीं भूल सकता उन हज़ार गुडमोर्निंग विशेस को जो रूम से क्लास जाते हुए मेरे सैकड़ों जूनियर्स विश करते थे जिनका नाम तक नहीं जनता मैं। मोह है उनलोगों का जिनसे कोई वास्ता नहीं था बस नज़रें मिलने पर एक प्यारी मुस्कान जाती थी दोनों के चेहरों पर। लालच है उन काली आँखों का जो छुप-छुपकर मेरे सारे सुकर्मो-कुकर्मों सब पर पैनी नज़र रखती थी, लालच है उन दर्जनों जुबानों का, जिसके हर थिरकन पर चहक उठता हूँ मैं। मैं चाहता था वहाँ का सबकुछ बटोर कर साथ ले जाऊं, 105 गार्ड (जिनसे मेरी अच्छी बनती थी) की सिक्योरिटी, 51 एकड़ का प्रांगण, पेड़ पौधे सबकुछ, जहाँ डर था, ही कोई बंधन। ऊपर से मेरे हाई कॉंफिडेंट रूम पार्टनर (चंद्रकांत एवं शुभम) जिनके बिना शायद मेरी होस्टल लाइफ फीकी रह जाती, बात-बात पर हमारी पार्टी डिमांड जो कभी पूरा नहीं करता कोई, 2 बजे रात में घूम घूमकर कॉफ़ी पीना और शुभम की शायरियों पर वाह-वाह करना, जो रात के - बजे के बाद ताजी बनती थी, कितने महफूज़ थे हम, मोह तो है। जानबूझ कर चंद्रकांत को परेशान करना वेवजह पीटना, कोई चौथा अगर रूम गया तो एकता का परिचय देते हुए उसकी खिचाई करना, उसके साथ रूमवाद करना। मोह तो है उस दोस्त का जो अब पास होते हुए भी पास होगी, ‘प्रज्ञा राजवंशएक ऐसी नाम जो लोगों को कंफ्यूज करती रही, जलाती रही, हैरान करती रही और मुझे हमेशा प्रेरित करती रही, सकारात्मक उर्जा भरती रही, आँसू बहाने के लिए कन्धा एवं आँसू पोछने को दुपट्टा देती रही। समझ नही रहा उन्हें शुक्रिया कहूँ या नही जिसने मेरे नकारात्मकता को संशोधित कर उर्जावान आत्मविश्वास में बदल दिया, एक हीन भावना से ग्रसित रंग छात्र को मालकाम एवं बी.डी. कपूर जैसे किरदार देकर विश्वविद्यालय देश के कई मंचों पर खड़ा कर दिया। लेकिन इस बात की भनक तक नहीं लगी की एक दिन सब छुट जायेगा और जो फिर नसीब नहीं होगा।

मैं, नितीश और उज्जवल बाँए से दांयी तरफ 
                         मैं सामान बाँधते हुए हैरान था कि मेरी आँखें धोखा क्यों दे रही है इनमे आये आँसू कितना बदनाम कर रहा है मेरी आँखों को, मेरे अज़ीज दोस्तों के विश्वास को क्यों झुठला रही है मेरी ऑंखें खैर खुदा का लाख शुक्रिया की मेरे आसपास कोई नहीं था जिनसे लिपट के रो सकूँ एकाएक एक झटका सा लगा और अहसास हुआ कि इतनी भीड़ में शायद अकेला होने जा रहा हूँ मैं मैं भाग कर स्पोर्ट्स ग्राउंड कि तरफ गया जहाँ कुछ स्टाफ घर जाने से पहले बोरा आम तोड़ने में मशगूल थे, मैं कुछ देर उस टूटते आम को देख कर अपने आपको टूटने से बचा रहा था, अचानक हवा तेज हो गयी और पेड़ों से पत्ते-फूल टूट-टूट कर ज़मीन पर बिखरने लगे और शायद मैं भी उसदिन मेरे सहपाठी (उज्ज्वल एवं नितीश) अचानक गए और - घंटा साथ बिताने के बाद मुझे अपनी कार से बस स्टॉप तक छोड़ दिया मैं समझ नहीं पा रहा था आज अचानक क्या हो गया है इनको 6 घंटों से मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ रहे ये दोनों, मैं चाहता था अपने फरेबी आँखों का बोझ हल्का कर लूँ ताकि खुश होने का धोखा इन दोनो को भी दे सकूँ, लेकिन इन दोनों से बच नहीं पाया शायद, कार में अचानक नितीश पुछ बैठातुझे दुःख नहीं हो रहा विपुल ?? “ मैं सन्न रह गया, लगा जैसे किसी ने कलेजे में हाथ रखकर मरोड़ दिया हो, मेरी आवाज़ नहीं निकल रही थी, मैं चुप था, उज्जवल के कार की रफ़्तार धीमी हो गयी थी, मेरी ओवर एक्टिंग पकड़ी गयी थी सामने पाम रेस्टुरेंट’ का बोर्ड दिखा मैंने कहाउज्ज्वल कॉफ़ी पीकर चलेंगे’, लेकिन हम पाम में चिकेन खा रहे थे, पुराने भेद खुलने लगे थे, सब अपना कुकर्म गिन रहे थे, अपने कुछ बीते लम्हों कीहम हँसी उड़ा रहे थे कि अचानक मुझे याद आया मैं कई औपचारिकतायें भूल आया हूँ, बाय तक नहीं कह पाया अपने कैंपस को... 

खैर अब यकीन होने लगा है कि मैं उम्र में बड़ा हो गया हूँ, बस कभी-कभी बिजली कटती है तो लगता है कि इंटरनेट भी कट गया होगा....    


विपुल आनंद
Master in Theatre Arts
                                  Central University of Jharkhand