फिल्म - रिबन नज़रिया भाषा - हिंदी
निर्देशिका - राखी शांडिल्य अवधि - 146 मिनट
उन दिनों मैं अपने दीदी और बहनोई के साथ दिल्ली में रहता था दीदी फैशन
डिज़ाइनर हैं और बहनोई जी एक सॉफ्टवेयर कंपनी में मेनेजर, उनका एक बेटा है जो उन
दिनों स्कूल के बाद डे केयर में रहता था । पता नहीं क्यों लेकिन फिल्म रिबन देखते
ही सबसे पहले अपने भांजे की याद आई, जिसने अन्दर तक झकझोर दिया, जैसे किसी ने हसीन
सपनो वाली नींद में सोये एक नौजवान पर बाल्टी भर ठंडा पानी डाल दिया हो । मैं फिल्म के शुरुआत से मध्यांतर तक लगातार
कनफ्लिक्ट के बारे में सोच रहा था शायद बेचैनी थी कनफ्लिक्ट की । लेकिन कनफ्लिक्ट इतना
भयावह होगा मैंने सोचा तक नहीं था, समाज का एक चेहरा इतना घिनौना और क्रूर है कि उसकी
परछाई तक से रूह कांप जाता है ।
वैसे तो किसी भी स्क्रिप्ट के मूलतः दो स्ट्रक्चर होते हैं लीनियर और
नॉन-लीनियर, रिबन का प्लाट लीनियर है । लीनियर के साथ हमेशा ये संदेह लगा रहता है कि
लोगों को आगे की कहानी का अंदाज़ा लग जाता है लेकिन इसे राइटर की चतुराई या डेप्थ
कहा सकता है कि कहानी के अगले सीन का अंदाज़ा आपका सरासर गलत हो जाता है । और आपको
लगता है, एक पल में ऐसा क्यों हो गया यार ? ये तो नहीं होना था । रिबन की कहानी बिलकुल
आपकी कहानी है जिसे आप कहीं से भी खुद को जोड़ कर महसूस कर सकते हैं शायद यही एक
वजह है जो कहानी के शीर्षक को सार्थक करता है । अगर कहानी को स्ट्रक्चरल और
इन्टेलेक्चुअल लेवल पर देखें तो कहानी का थीम, सब्जेक्ट, और मैसेज क्लियर और
एंटरटेनिंग होनी चाहिए । रिबन इस पैमाने पर बिलकुल खरा उतरता है ।
फिल्म के फ्रेम और सेटिंग की
बात करें तो पहले शॉट जिसे ट्रेलर में भी दिखाया गया है । जहाँ सुहाना अपने
प्रेगनेंसी की बात एक आधा बने हुए ईमारत के छठे मंजिले छत पर अपने पति करण से करती
है, ये छठा मंजिल कहीं न कहीं सुहाना के सक्सेस के आखरी पड़ाव को डिनोट करती है । जिसे
पता है कि अगर प्रेगनेंट हुयी तो ये करियर की ईमारत इसी तरह अधूरी रह जाएगी । ये
एक छोटा सा एक्साम्पल दिया मैंने । आप जब फिल्म देखेंगे तो शायद आपको ऐसे कई
एक्साम्पल्स मिलेंगे । इसके अलावा फिल्म की कास्टिंग जिसने भी की है वो सलाम के
हक़दार हैं ।
एक्टिंग की बात करें तो सबसे पहले आशी को सलाम इस बच्ची के डायलाग
डिलेवरी का मुरीद हूँ मैं । कल्की कोचालिन अपने जबरदस्त फॉर्म में हैं जिसने कई
बार अपने अभिनय से हमें चौंका दिया, एक एक्टर जब एक ही किरदार में 3 - 4 किरदार
अदा करने लगे तो हैरानी तो होगी ही । पता ही नहीं चलता कि कब पत्नी से माँ और माँ
से एक एम्प्लोय बन जाती हैं एक ही शॉट में पति से झगडा और बच्ची से प्यार ये तो एक
सधी हुयी अभिनेत्री ही कर सकती हैं । सुमित व्यास इतने सहज तरीके से एक पिता को
जिया है कि उनकी बेबसी सीधा दर्शक के दिल को छू जाती है । इसके अलावा एक किरदार बाई
जिसने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी, उनकी बात न करना शायद बेमानी
होगी । इन सब किरदारों के बीच के सामंजस बनाने में निर्देशक के द्वारा दिया गया
मोटिवेशनल यूनिट बहुत ही क्लीन है जो दो सीन के बीच जम्प नहीं आने देता है ।
सबसे खास बात कि कहानी एक मैसेज छोडती है जो कहीं न कहीं समाज के हर
तबके को सचेत करती है साथ ही एक दाम्पत्य जीवन को जीवंत करती है । रिबन उन फिल्मों
में से है जिसे हर इन्सान को देखना चाहिए । कहने को तो बहुत कुछ है शायद आर्टिकल
बड़ा न हो जाये इस डर से...
रिबन की पूरी टीम को बधाई । बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के लिए शुभकामना ।||
विपुल आनंद
अभिनेता, रंगकर्मी
संपर्क - 09110922881
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें