नाटक- 'नटमेठिया' प्रेक्षागृह से.....
|
नाटक - नटमेठिया में भिखारी ठाकुर की भूमिका में अजीत कुमार |
रणधीर कुमार द्वारा निर्देशित नाटक नटमेठिया वर्ष 2014 में पटना में प्रदर्शित हुये 2-4 बेहतरीन नाटकों में से एक है। इस प्रस्तुति की सबसे खास बात यह थी कि पुरे नाटक के दृश्यों को निर्देशक / नाटककार महोदय ने बहुत ही अच्छी तरह से बुना हुआ था। साथ हीं इस नाटक को परोसने का अंदाज़ भी बिलकुल अलग था जैसे एक पात्र को नौ अभिनेताओं से प्रदर्शित करवाना, या एक दृश्य का दूसरे दृश्य में समाहित होना, देखने लायक था। नाटक की गति और खूबसूरती में इतना सामंजस्य था कि हमें पलक झपकते हुए भी डर लग रहा था कि कहीं इस दौरान नाटक का कोई खूबसूरत हिस्सा अनदेखा न रह जाये। शायद यही वजह है कि नटमेठिया के अब तक हुए पाँच मंचन को देखने बावजूद भी मैं छठे के इंतज़ार में हूँ।
|
नाटक - नटमेठिया के एक दृश्य में आशुतोष अभिज्ञ
|
नाटक की शुरुआत काफी अच्छी रही। पहले सूत्रधार का माइक लिये प्रवेश, सूत्रधार का मोबइल को ऑफ करने का रिक्वेस्ट करना बिलकुल अनोखा था। जो दर्शकों को पूरा नाटक देखने के लिए उत्साहित कर रहा था। साथ हीं इस नाटक में दो - तीन चीजें ऐसी थी जो पटना रंगमच के कुछ गिनेचुने नाटकों में हीं होता है। जैसे की एक हीं props का स्वरुप दृश्य के हिसाब से बदलते जाना, Props का Shifting, Entry-exit का सलीके से होना, पेंटिंग का इस्तमाल, इत्यादि। इस प्रकार बहुत हीं नयनप्रिय तरीके से लगभग डेढ़ - दो घंटे में भिखरी ठाकुर की ज़िन्दगी का एक बड़ा सा हिस्सा इस नाटक में जीवंत होता है। इस नाटक के अंदर एक खास चीज थी जो मुझे एक दर्शक के रूप में बेहद पसंद आया। वो था अजीत कुमार और आशुतोष अभिज्ञ का प्रदर्शन ! (दोनों पटना रंगमंच के सधे हुये अभिनेताओं में से एक हैं, हाल में हीं रंगकर्मी श्री कान्त मन्डल सम्मान २०१४ के लिए श्री आशुतोष अभिज्ञ को चुना गया है। ) जो वाकई क़ाबिले तारीफ था। या इस बात को यूँ भी कहा सकता है कि निर्देशक रणधीर कुमार ने अपने अभिनेताओं के अभिनय क्षमता का भरपूर सदुपयोग नाटक नटमेठिया में किया। मामला जो भी हो, लेकिन इन दोनों अभिनेताओं द्वारा किये गए अलग - अलग सोलो पार्ट, अजीत कुमार के द्वारा किये गये अभिनय में विभिन्न पात्रों पर detail work का दिखना, आशुतोष अभिज्ञ के द्वारा किये अभिनय में charactor के innocent हरकतों का दिखना, दर्शकों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।मुझे बेहद अच्छा लग रहा था जब मेरे बगल में बैठे बंधु आपस में फुसफुसाते हुए इन दोनों की तारीफ कर रहे थे, और जब अजीत कुमार को अलग - अलग किरदारों में पहचान नहीं पते थे तब तसल्ली लिए धीरे से मुझसे पूछ बैठते थे कि क्या वाकई यह आदमी वही है जो अभी मंच से गया था। खैर, नाटक का आखरी 10 मिनट काफी रोमांचक था जो एक साथ दो-दो टेस्ट देता है, एक तरफ भिखारी ठाकुर का दर्द तो दूसरी तरफ बिहार का पारम्परिक नाच। इसी दृश्य में नाटक में परदे का समियाना बन जाना भी काफी आकर्षक था। साथ ही मंच पार्श्व के सभी कलाकारों के बेहतरीन प्रदर्शन इस नाटक की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे।
प्रेक्षागृह के बाहर प्रस्तुति के कई दिनों बाद भी नाटक नटमेठिया के नाटककार पुंज प्रकाश अपने सशक्त लेखन क्षमता तथा नाटक के डायलाग में उपयोग होने वाली बोलचाल की भाषा को लेकर चर्चा में बने रहे। नाटक के संगीत के लिए भी इनकी जमकर तारीफ हुयी।
नाटक - नटमेठिया की सफल प्रस्तुतियों के लिये राग रंगमंडल को हार्दिक बधाई।
Note- यह लेख नाटक नटमेठिया की समीक्षा नहीं है। यह लेख सिर्फ नाटक देखते हुए तथा देखने के बाद की मेरी अनुभूति और कुछ दर्शकों से मेरी हुयी आपसी बातचीत पर आधारित है।