मंगलवार, 9 सितंबर 2014

                                 रंगमंच को गाली देने वाले रंगकर्मियों के खिलाफ -


                                                                  
         कितनी अजीब बात है कि जिस रंगमंच के लिए हमारे कुछ रंगकर्मी भाई साहब ने अपने ज़माने में सबकुछ छोड़ा था, आज वो उस रंगमंच को गाली देते हुए नहीं थकते हैं। आज हर जगह ये भ्रांतियां फैला रहे हैं कि रंगमंच ने उनकी ज़िन्दगी तबाह कर दी।  मैं उन तमाम भाई साहब से पूछना चाहूंगा की आपने रंगमंच को क्या दिया ? आपने अपने आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़ा ? शराब की बोतले ! अभी आप हमारी पीढ़ी को क्या सीखा रहे हैं ? अपने वरिष्ठ तथा सम्मानित रंगकर्मियों को गाली देना, उन्हें अपमानित करना ! क्या ? माफ़ कीजियेगा भाई साहब, मुझे आपसे घिन्न आती है जब आप अपनेआप को बड़ा या सच्चा रंगकर्मी साबित करने के लिए हमारे आदर्श, गुरु तथा प्रख्यात रंगकर्मियों के बारे में उलटी - सीधी बातें कर उन्हें हमारी नज़रों में गिराने या उनका कद कम करने की कोशिश करते हैं। लेकिन सच मानिये आपके लाख कोशिशों के बावजूद भी उनका इज़्ज़त हमारी नज़रों में बरक़रार है और हमें अपनी इस नज़र पर गर्व है। भाई साहब हम कच्चे जरूर हैं लेकिन इतना तो हमें समझ में आता है कि कोई आदमी शीर्ष पर तभी होता है जब वो उस ऊंचाई के क़ाबिल होता है। (उनका ईमानदार होना या नहीं होना अलग मसला है
          मुझे बड़ा आश्चर्य होता है जब कोई रंगकर्मी अपना प्रदर्शन करने के बाद कॉलर खड़ा कर प्रेक्षागृह के बाहर स्टाइल सिगरेट पीते हुए लोगों की बधाइयों के लिए पोज़ दिए खड़ा रहते हैंऔर अगर आप उधर से गुज़र रहे होते हैं, तो आपको बुलाकर सिगरेट तथा चाय के लिए आमंत्रित करते हैं, ताकि आप उनके प्रदर्शन की झूठी तारीफ करें। खैर, हमें इन बातों से ऐतराज़ नहीं है बस आश्चर्य होता है।

       मैंने पटना तथा दिल्ली रंगमंच में रहते हुए बहुत से ऐसे लोगों को भी झेला है जिसकी कोई औकात नहीं है। (काम के आधार पर) फिर भी वो किसी भी बड़े रंग विद्वानों की आलोचना उनके व्यक्तित्व, चरित्र तथा प्रेम संबंधों के आधार पर करते हैं कहते - कहते यहाँ तक कह देते हैं कि- वो रंग विद्वान दरअसल बहुत बड़ा अय्याश है, तथा उनका रंगमंडल / रंगपरिवार अय्याशी का अड्डा। जबकि उनके काम के बारे में चन्द शब्द भी बोलने को नहीं मिलता। शब्द कैसे मिलेगा क्योंकि उनके काम को देखने की आदत तो भाई साहब को है हीं नहीं। उनका 
कृतिमान, उनका सम्मान भाई साहब से हज़म हीं नहीं होता। महिला रंगकर्मियों के बारे में भाई साहब को कुछ ज्यादा ही पता होता है,चाहे वो कितनी भी बड़ी अभिनेत्री/निर्देशिका/रंगमहिला क्यों हों। उनके व्यक्तिगत मामलों की खबर बड़ा जल्दी इन्हें मिल जाता है यहाँ तक की कोई नयी लड़की के आने के दूसरे दिन ही इन्हे पता चल जाता है कि उस लड़की का - प्रेमी हैं उसमे से या के साथ उसका अबैध सम्बन्ध भी है। ये बात भले ही वो महिला नहीं जानती हो, पर भाई साहब को पूरा पता होता है।वाक़ई भाय साहब आप बहुते टैलेंटेड हैं, हम तो जानबे करते कि आप एक सधे हुए रंगकर्मी हैं, लेकिन कोय आपका टैलेंटबे नै पहचाना। कोय बात ने होता है - होता है। हमरा सहानुभूति आपके साथ है।    
  • जरा सोचिये जब अपने ही लोग अपने ही लोगों के बारे में ऐसी राय बनाएंगे तो दुनिया हम पर क्यों हँसे, हमें क्यों गाली दे ? क्यों कोई माँ-बाप अपने बेटे-बेटियों को रंगमंच में आने की इज़ाज़त दे ?

Note - यह सारी बातें जो मैंने लिखी है वो मेरे व्यकिगत अनुभव के आधार पर हैं।         

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय विपुलजी,

    कोई भी विचार सन्दर्भ-विहीन नहीं होता | इस तरह की टिप्पणी का कोई विशेष अर्थ नहीं है !

    रंगकर्मी भी इसी समाज का अंग है और समाज के विरोधाभासों का प्रभाव उस पर भी पड़ता है | आपने जिन भी 'वरिष्ठ रंगकर्मी' का ज़िक्र किया है, वैसे लोग हर क्षेत्र में आपको मिल जाएंगे | रंगमंच अपवाद नहीं है |

    आप सकारात्मक बातें लिखें | ऐसी टिप्पणी या लेख - जिससे रंगमंच की प्रमुख समस्याओं के विषय में पाठक को आपके विचार से परिचित होने का अवसर मिले | निरर्थक वैयक्तिक बातों में अपनी ऊर्जा और समय नष्ट न करें |

    एक बात और, व्याकरण और हिज्जे के प्रति भी सजग रहें |

    बहुत कम ऐसे युवा रंगकर्मी हैं, जिनकी लिखने-पढ़ने में अभिरुचि है | आप इस दिशा में सक्रिय हैं, यह यह प्रशंसनीय है | इसी तरह लिखते रहें और ख़ूब पढ़ें |

    शुभकामनाएँ !

    - परवेज़ अख्तर |

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    1. सर, मैं आपकी बातों से सहमत हूँ तथा आपके सुझावों की इज़्ज़त करता हूँ। आगे से इन सारी बातों का ध्यान रखूँगा।

      टिप्पणी के लिए शुक्रिया !

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  2. विपुल जी मैं परवेज़ जी से सहमत हूँ। मनुष्य को अपना काम करना चाहिए ना । बहुत खुश हूँ मैं।

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