रविवार, 6 सितंबर 2015

       क्या करते 



चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले.....
उनको हमसे मोहब्बत ही न हुयी,
तो हम उनसे इकरार क्या करते,
वो बात करने को राजी ही नहीं,
तो हम उनसे इज़हार क्या करते ! 

नज़रें हर पल ढूंढती है उन्हें दर-ब-दर,
कहीं तो उनका नजारा मिले,
पर जब उनका नज़र आना ही नहीं,
तो अपने नजर को इनकार क्या करते ! 

उतना तो वो मुझसे नफरत भी नहीं करती,
जितना मैं उनसे मोहब्बत करता हूँ,
लेकिन जब उन्हें मेरी चाहत ही नहीं,
तो खुद को ज्यादा बेक़रार क्या करते !

उनको मेरे हाल-ए-दिल की फिकर नहीं,
हाँ मैं हूँ बर्बाद, पर बेखबर नहीं,
जब एक से ही मिली ऐसी बदहाली,
तो और किसी का दीदार क्या करते !

माना उनकी यादों का मखमूर हुए जा रहा हूँ मैं,
अपने बहते आंसू को घूंट – घूंट के पिए जा रहा हूँ मैं,
बखुबन जनता हूँ सब बेकार है उनके लिये,
तो बात-बात पर उनसे तकरार क्या करते  !  

दुनिया बयां करती है मेरी तबाही का हरेक सबब,
सब हँसते हैं देख मेरी तबाही का मंजर,
जब मुझे ही अपनों की खबर नहीं,
तो अपनों को अपना खबर की करते !

बस आखिरी एक शिकवा है उस रब से,
क्यों लिख दी मेरे मुक़द्दर में ऐसी ज़िन्दगानी,
कि उनका मुझसे बात करना भी मुनासिब नहीं,
और हम उनका इंतजार किया करते।।।    

                                                                                -विपुल आनंद 


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