गुरुवार, 24 सितंबर 2015

"हँसना आ गया" 

तेरा हर सवाल मैं हूँ और मेरी हर जबाब तुम.....  हा हा  हा  लोल  ।  
हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

मैं रोकर ग़म को झेल रहा था,
वो हँसकर ग़म से खेल रहा था 
उसके अन्दर जब मैं झाँका,
खुद पर मैं शरमा  गया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

उसे भी ग़म था, मुझे भी ग़म था 
उसे था ज्यादा, मुझे ही कम था 
फिर क्यों इतना रो रहा था,
ये सोच कर मैं पछता गया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

मैं तो हँसना भूल गया था,
घोंप के दिल में कोई शूल गया था,
लेकिन मैंने जीना चाहा,
शायद अब जीना आ गया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

मैंने उनसे हँसी भी माँगी,
थोड़ी उनसे ख़ुशी भी माँगी,
खुश था मुझको ख़ुशी वो देकर,
ख़ुशी से ख़ुशी भी आ गयी। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

सच में आँसू, सच को पीना,
सच है मुश्किल, सच को जीना,
सच हीं मुझको बोल रहा था,
सच में मैं आजमा लिया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया......

विपुल आनंद             

1 टिप्पणी:


  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 12 दिसंबर 2015 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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