आइएचसी भाषा महोत्सव समन्वय का आयोजन
: अमन आकाश, दिल्ली
विश्वविद्यालय
नयी
दिल्ली. भारत पर्यावास केंद्र (आइएचसी) के मुक्ताकाश मंच में चतुर्थ भारतीय भाषा
महोत्सव “समन्वय” का आयोजन किया गया। 6 नवंबर से 9 नवंबर तक चले इस कार्यक्रम का
थीम भाषांतर-देशांतर था। 2011 से सालाना होते चले आ रहे इस कार्यक्रम में इस बार
बांग्लादेश, श्रीलंका
और नेपाल के साहित्यकारों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की। कार्यक्रम के गवाह 2
पद्मश्री विजेता, 11 साहित्य अकादमी प्राप्तकर्ता और 3
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता बने।
पारंपरिक रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मौके पर उद्घाटन सत्र के वक्ता एवं वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी, दिल्ली प्रैस के मुख्य संपादक परेश नाथ, राकेश कक्कड़, गिरिराज किराडु आदि मौजूद थे। उद्घाटन समारोह के बाद मुख्य वक्ता अशोक वाजपेयी ने “हमारे समय में साहित्य” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि आज हमारे पास करने को अदम्य संवाद हैं लेकिन हमारी शब्दशक्ति क्षीण पड़ती जा रही है। हमारा साहित्य से विराग हो रहा है। जो साहित्य सपने देखने की हिम्मत देती है, जो साहित्य दूरियों-बंधनों को तोड़ती है, आज हम उस साहित्य से दूर होते चले जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार हर दिन एक भाषा मर रही है, जोकि चिंता का विषय है। व्याख्यान के दौरान वाजपेयी जी ने चलबोला (मोबाईल) पर व्यंग्यात्मक चुटकी लेते हुए कहा कि यह इस युग का सबसे अभद्र आविष्कार है।
दूसरा सत्र
श्रद्धांजलि सत्र था। इसमें दिवंगत साहित्यकारों यू आर अनंतमूर्ति, राजेंद्र यादव, नवारूण भट्टाचार्य, खुशवंत सिंह, बिपन चंद्रा को क्रमश: पूर्व रानावि अध्यक्ष रामगोपाल बजाज, सत्यानंद निरूपम, तथागत भट्टाचार्य, दानिश हुसैन और संजय शर्मा ने उनकी रचनाओं का पाठ कर उन्हें श्रद्धांजलि
दी। पहले दिन के कार्यक्रम का समापन सूफी गायक मीर मुख्तियार अली की प्रस्तुति के
साथ हुआ। अपनी दिलकश प्रस्तुति के दौरान अमीर खुसरो और कबीर के फिकरों को गाकर
श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
7 नवंबर की भीनी दोपहर में भारतीय
भाषा के विविध रूप की झलक लिए समन्वय में शुक्रवार के सत्र की शुरूआत दोपहर दो बजे ‘पल्प गल्प – हिन्दी में नया पॉपूलर’ पर बहस से हुई। सत्र का संयोजन समन्वय के
क्रिएटिव डायरेक्टर गिरिराज किराडु ने किया। सत्र में मौजूद वक्ताओं में अनु सिंह
चौधरी, प्रभात रंजन, राजेन्द्र
धोड़पकर और सत्यानंद निरूपम थे।कार्यक्रम का दूसरा सत्र समन्वय के
इस साल के थीम - भाषांतर देशांतर पर आधारित था। इसका संचालन अरूणावा सिन्हा ने
किया। अन्य वक्ता जिलियन राइट, तमिल साहित्यकार
के. सच्चिदानंद, बांग्लादेशी लेखक फ़खरूल आलम एवं अरूंधति
सुब्रमण्यम थीं। इस साल का तीसरा समन्वय भाषा
सम्मान जाने माने साहित्यकार, विचारक अशोक
वाजपेयी जी को दिया गया। सम्मान में वाजपेयी जी को प्रशस्ति पत्र और एक लाख रूपय का चेक दिया गया। मंच पर उनके सम्मान में कवि उदय नारायण
सिंह, पूर्व आईएचसी निदेशक और समन्वय के संस्थापक राज
लिब्रहन, गुजराती साहित्यकार सीतांशु यशस्चंद्र उपस्थित
थे। मंच का संचालन गिरिराज किराडु द्वारा किया गया।
तीसरे सत्र का विषय “बस्तर की बदलती बोलियाँ (हल्बी, दोरली, भतरी व अन्य)” था। जिसपर कट्टम सीताराम, राजीव रंजन प्रसाद, रुद्रनारायण पाणिग्रही, विक्रम कुमार सोनी आदि ने अपनी राय रखी। इस
सत्र के सूत्रधार पंकज चतुर्वेदी थे।
चौथे सत्र “किसका शहर, किसकी ज़ुबान”
के वक्ता संगीतकार इरशाद कामिल, अभिनेता सौरभ शुक्ला,
राकेश कुमार सिंह एवं अल्ताफ़ टायरवाला थे। सत्र का संचालन जैरी
पिंटो ने किया। सत्र के बाद रानावि के पूर्व अध्यक्ष रामगोपाल बजाज ने कवि अज्ञेय
की पंक्तियों का पाठ किया।
दूसरे दिन के कार्यक्रम
का समापन नागाओं के लोकसंगीत से हुआ। उत्तरपूर्वी कलाकार अलोबो नागा, तेत्सेओ सिस्टर्स, मैनयांग किचू, सेपोंगला संगतम ने अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं का मन मोह लिया। मस्ती
में भाषा कभी आड़े नहीं आयी और श्रोता पूरी प्रस्तुति में झूमते दिखे।
8 नवंबर शनिवार की
अलसाई शाम को तरोताजा करते हुए समन्वय में आज के सत्र
की शुरूआत कविता पाठ से हुई। 'भाषांतर : कविता पाठ' में कवि, आलोचक और जन संस्कृति मंच से जुड़े
इलाहाबाद के मृत्युंजय ने भोजपुरी में मज़दूर और मज़दूरनियों के जीवन से जुड़े गीतों का पाठ कर समा बाँध दिया।
सत्र में समकालीन तमिल कवयित्री सलमा ने तमिल में कविता पाठ किया जिसका अंग्रेज़ी
अनुवाद जैरी पिंटो द्वारा पढ़ा गया। इसके अलावा कवि,
लेखक और अनुवादक अर्जुन चौधरी ने कवि रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी
रचना रश्मिरथी के अपने अनुवाद का पाठ कर लोगों के सामने एक अच्छे अनुवाद की मिसाल
पेश की।
समन्वय के तीसरे दिन के सत्र में वक्ताओं और श्रोताओं का उत्साह खूब बढ़
चढ़ कर दिखा। कोंकणी के सत्र की शुरूआत करते हुए सूत्रधार दामोदर माउज़ो सत्र में
स्रोताओं की सक्रिय उपस्थिति
से चकित रह गए।। सत्र में कोंकणी भाषा के इतिहास के परिपेक्ष्य में गोवा के इतिहास
और राजनीति की भी भरपूर चर्चा हुई। पुंडलिक नायक, मेल्विन
रॉड्रिग्स और सोनिया सिरसत जैसे ख्यातिप्राप्त चेहरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कर
लोगों को कोंकणी के इतिहास और वर्तमान से उनका परिचय कराया। कोंकणी को गोवा की
राजभाषा का हक़ दिलवाने के लिए पुंडलिक नायक का संघर्ष इतिहास के पन्नों में दर्ज
है।
भाषा की सीमाओं पर छिड़ी बहस को आगे बढ़ाते हुए समन्वय के तीसरे सत्र 'देशांतर:
विभाजन के रूपक' का संचालन जन संस्कृति मंच से जुड़े,
हिन्दी में नए विचारों के पैरोकार, लेखक
प्राध्यापक हिमांशु पंड्या ने किया। प्रसिद्ध लेखकों मंज़ूर एहतेशाम और अब्दुल्ला
बिस्मिल्ला की मौजूदगी में हिन्दी और उर्दू के बीच के विभाजन पर बहुत ही गहन और
रोचक चर्चा ने पर्यावास की शाम में एक अलग ही उत्तेजना भर दी। मंच पर अब्दुल्ल
बिस्मिल्ला ने कहा, " दोनों भाषाओं के बीच की दूरी
सिर्फ़ एक लेखक ही पाट सकता है। लेखक का कोई धर्म नहीं होता कोई जाति नहीं
होती।" उन्होंने यह भी कहा कि आज जो कुछ बदलाव हुए हैं वह रचनाकारों की ही
देन है। वहीं अपनी बात कहते हुए मंज़ूर एहतेशाम ने कहा कि दरअसल इतिहास ही है जो
हर वक़्त हम पर हावी रहती है। उन्होंने कहा, " इतिहास,
कठपुतली नाच में नज़र न आने वाली वो रस्सी है जो हमें नचाती रहती
है।"
भाषा की विविधता पर बात करने की समन्वय की प्रतिबद्धता को क़ायम रखते हुए
पंजाबी भाषा पर केन्द्रित सत्र
शुरू हुआ। 'प्रदेश की कल्पना' नाम से
इस सत्र की सूत्रधार थीं निरूपमा दत्त जिनकी पहचान एक पत्रकार, कवयित्री और कला आलोचक के रूप में है। पंजाबी एक ऐसी भाषा है जो शिकागो हो
या कनाडा वहाँ भी उसी रूप में बोली जाती है जिस रूप में वह पंजाब में बोली जाती
है। सत्र में जाने माने गीतकार, सूफ़ी गायक और फ़िल्म सिद्धांतकार मदन गोपाल सिंह, पंजाब विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रवीन्द्र रवि और और पंजाबी के जाने
माने लेखक और कवि सुरजीत पातर मौजूद थे, जिनके बीच देश-परदेश
में पंजाबी की विविधता पर मनोरंजक बातचीत हुई।
पंजाबी से निकली बहस अगले सत्र में संस्कृत पर हुई चर्चा में दिखाई दी।
'आधुनिकता के अंतर्द्वन्द' में आज वैश्वीकरण के इस माहौल में संस्कृत की स्थिति और संस्कृत के स्वंय के भीतर
होने वाले परिवर्तनों पर विस्तार से चर्चा करने के लिए मंच पर कई विचारक और
साहित्यकार उपस्थित थे। मंच पर संस्कृत के प्रसिद्ध कवि प्रवीण पंड्या, संस्कृत के जाने माने नाट्य लेखक और चिंतक राधावल्लभ त्रिपाठी और लेखक बलराम शुक्ला मौजूद थे। सत्र का संचालन बजरंग
बिहारी तिवारी द्वारा किया गया। गहन चर्चा में कई सवाल निकल कर सामने आए जिनके आलोक में संस्कृत साहित्य में दलित और
स्त्री प्रश्नों पर गहन चर्चा हुई।
"
हम अपने परिवार वालों को फ़िल्मों में काम करते हुए देखकर बड़े नहीं
हुए बल्कि फ़िल्म की दुनिया में हमने अपनी जगह खुद बनाई है।" यह कहना था संजय
चौहान का जिनके द्वारा लिखी फ़िल्म पान सिंह तोमर साल की सुपरहिट फ़िल्म थी। 'कहानी फ़िल्मी नहीं है' सत्र में बोलते हुए कलाकार
विनय पाठक ने कहा कि ' भेजा फ्राई के बाद मेरे अभिनय की
दुकान चल पड़ी' । फ़ार्मूला फ़िल्म, छोटे
बजट की फ़िल्म और नॉन फ़िल्मी जगत से आने वाले लोगों के लिए कितनी संभावनाएँ होती
है जैसे सवालों पर वक़्ता सौरभ शुक्ला और अनुषा रिज़वी ने बड़े ही रोचक अंदाज में
अपने अनुभव लोगों के साथ साझा किए। इस सत्र का संचालन फ़िल्म समीक्षक मयंक शेखर
द्वारा किया गया।
सत्र का समापन गीतकार स्वानंद किरकिरे की प्रस्तुति से
होना था, लेकिन शारीरिक अस्वस्थता की वजह से वो आ नहीं सके।
इसकी घोषणा होते ही युवावर्ग में मायूसी छा गयी।
9 नवंबर की शाम को रोचक बनाया उत्तर प्रदेश और बिहार के
जनसामान्य की भाषा भोजपुरी पर छिड़े बहस ने। बहस का मुद्दा था “विस्थापन, करूणा और गीत: भोजपुरी नक्शे में।“ वक्ता थे पत्रकार अरविंद मोहन, अरुणेश नीरन, बद्रीनारायण और सुरभि शर्मा। सत्र का
संचालन मृत्युंजय ने किया।
अगला सत्र बांग्ला भाषा पर केंद्रित था। विषय था “भाषा
एक, देश दो। वक्ता फ़खरूल आलम, सुबोध
सरकार, सैयद शम्सुल हक़ ने अपने मत रखे। मंच संचालिका थीं
कौशिकी दासगुप्ता।
साल 2015 सूचना के अधिकार के 10 साल पूरे होने का साल है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इन दस सालों में सूचना का अधिकार किस मुक़ाम पर खड़ा है? ऐसे हीकई अन्य सवालों के साथ समन्वय के चौथे दिन की शाम 'सूचना: औज़ार और हथियार' सत्र शुरू हुआ। सत्र में मंच पर राजस्थान से आए सामाजिक कार्यकर्ता भँवर
मेघवंशी, सूचना के अधिकार के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार श्याम लाल यादव,
एसएनएस संस्था की संस्थापक अंजलि भारद्वाज, स्वतंत्र पत्रकार विचारक
परांजयगुहा ठाकुरता और जवाहर लाल विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर कौस्तव बैनर्जी की उपस्थिति में सूचना के क़ानून की महत्ता,असल में इस क़ानून ने किन लोगों की मदद की और सरकार के वह तरह-तरह के तिकड़म जिसके तहत सरकार सूचना को छिपाने की पूरी कोशिश करती है, पर विस्तार से गहन चर्चा हुई।
कार्यक्रम की आखिरी शाम को खुशनुमा बनाया “दोआब” में
विद्या शाह की प्रस्तुति ने। फैज़ अहमद फैज़ के नज़्मों के साथ-साथ अभी जाने की जिद
ना करो, दमादम मस्त कलंदर जैसी शानदार प्रस्तुतियों ने
समारोह में चार चांद लगा दिए।
अंत में समन्वय के क्रिएटिव डायरेक्टर गिरिराज किराडु ने
सबका धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। साथ ही सत्यानन्द निरुपम ने घोषणा की किअगले वर्ष समन्वय-2015 26 से 29
नवंबर तक आयोजित किया जायेगा।
भाई वाह क्या बात है। प्रयास बहुत सराहनीए है।
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