गुरुवार, 24 सितंबर 2015

"हँसना आ गया" 

तेरा हर सवाल मैं हूँ और मेरी हर जबाब तुम.....  हा हा  हा  लोल  ।  
हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

मैं रोकर ग़म को झेल रहा था,
वो हँसकर ग़म से खेल रहा था 
उसके अन्दर जब मैं झाँका,
खुद पर मैं शरमा  गया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

उसे भी ग़म था, मुझे भी ग़म था 
उसे था ज्यादा, मुझे ही कम था 
फिर क्यों इतना रो रहा था,
ये सोच कर मैं पछता गया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

मैं तो हँसना भूल गया था,
घोंप के दिल में कोई शूल गया था,
लेकिन मैंने जीना चाहा,
शायद अब जीना आ गया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

मैंने उनसे हँसी भी माँगी,
थोड़ी उनसे ख़ुशी भी माँगी,
खुश था मुझको ख़ुशी वो देकर,
ख़ुशी से ख़ुशी भी आ गयी। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया। 

सच में आँसू, सच को पीना,
सच है मुश्किल, सच को जीना,
सच हीं मुझको बोल रहा था,
सच में मैं आजमा लिया। 

हँसते देखा उसे जो ग़म में ,
मुझे भी हँसना आ गया......

विपुल आनंद             

रविवार, 6 सितंबर 2015

अन्तर्वासना डॉट कॉम......


: अमन आकाश :
 पत्रकारिता एवं जनसंचार, अंतिम वर्ष
           पिछले दिनों पोर्न साइट्स को बैन कराने के केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसले का जमकर विरोध किया गया.. तमाम बुद्धिजीवीयों ने भी इसपर कड़ी आपत्ति जतायी..सोशल मीडिया में इसको लेकर तमाम तरह की चुटकुलेबाजी हुई..
हो सकता है ऐसी पाबंदी लगाना निजता के अधिकार का हनन हो! एक वयस्क अपने घर में, अपने मोबाइल में पोर्न साइट्स देखता है तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए.. बुभुक्षा, पिपासा के साथ कामेच्छा को काबू में करने के लिए भी कुछ तत्त्व होने चाहिए.. अगर ऐसा नहीं किया गया तो हमारा समाज कई तरह की मानसिक विकृतियों का शिकार बनेगा. बलात्कार, यौन शोषण, अप्राकृतिक सम्बन्ध जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ महामारी की तरह फ़ैल जाएगी..
                          काफी हो-हल्ला मचा के पोर्न साइट्स को बैन होने से बचा लिया गया.. चलिए, इस कड़े विरोध ने एक मूल अधिकार का हनन होते-होते रह गया.. इसके साथ ही करीब 800 पोर्न साइट्स के नाम भी बाहर आए..अब आप आराम से अपनी चारदीवारी के भीतर "निजता के अधिकार" का देर रात तक मजा ले सकते हैं!!

                         खैर पोर्न वीडियो, हॉट चैटिंग, हॉट कालिंग इन सब के लिए कम से कम एक अच्छा-खासा एंड्राइड मोबाइल और उसमें अच्छी स्पीड वाली इंटरनेट पैक की ज़रुरत होती है.. लेकिन "अश्लील साहित्य" तो सहज उपलब्ध है, कम बजट के मोबाइल पर भी और कम स्पीड वाले नेट में भी..इंटरनेट पर सेक्स कहानियों का अक्षयभण्डार मौजूद है.. इसके पाठक ज्यादातर टीन-एजर हैं.. कहानियों की जिस तरह प्रस्तुति रहती है, हमारे मस्तिष्क को चित्रावलोकन करा देती है.. रिश्तों को तार-तार करने वाली इन कहानियों में सेक्स के इतने वीभत्स रूप को परोसा जाता है कि पाठक एक क्षण को विचलित हो जाए. ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ शहर या कस्बों में है, आज से 10 साल पहले सुदूर देहात में हमारे एक मित्र किसीे सुनसान जगह पर मंडली इकट्ठी कर कथा बांचते और हम तल्लीनता से सुनते.. उस समय पाठ्यपुस्तक की दुकानों पर "मस्तराम" रचित साहित्य मिलती थी लेकिन अपने गाँव के दुकानदार से जाकर खरीदना जरा जोखिम का काम था.. मोबाइल और नेट ने इस मीठे जहर को घर-घर में पहुंचा दिया.. "सविता भाभी" से शुरू इन कहानियों में पिता-पुत्री, भाई-बहन, मामी-भांजा, यहाँ तक की माँ-बेटा तक के रिश्तों का चीरहरण होता है.. बाल मनोमस्तिष्क पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या रिश्तों की मर्यादाएं रह जाएंगी? क्या हम स्त्रियों को देविस्वरूप देख पाएंगे?
                         ऐसा नहीं है इन चीजों को खोजने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है.. कुछ दिन पहले मैं गूगल पर हिंदी के इतिहास के बारे में जानने के लिए "हिन्दी" टाइप किया, नीचे दस ऑप्शंस आ गए.. पहला ही आप्शन था "हिन्दी सेक्स कहानियाँ", "हिन्दी मसालेदार कहानियाँ" आदि-आदि.. ज़ाहिर सी बात है जो चीजें ज्यादा सर्च की जाएंगी, उनको ऊपर रखा ही जाएगा..
                          बाल्यावस्था से किशोरावस्था में नया कदम रखे किसी बच्चे ने उत्सुकतावश उसपर क्लिक कर दिया तो फिर वह कभी उबर नहीं पाएगा.. उसकी मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, सोचना एक बार झकझोर देता है! 
आज अगर आप अखबार के पन्ने पलटिए तो पाएंगे की दुराचार या यौन शोषण के मामलों में अपने घरवाले भी शामिल होते हैं..अन्य रिश्तों का क्या भरोसा जब सगा बाप दुष्कर्मी निकल जाता है..!
                      इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए सरकार को कम-से-कम ऐसी कहानियों को बैन कर देना चाहिए या प्रेषित-प्रसारित करने वालों के लिए कड़े दंड का प्रावधान करना चाहिए.. इस तरह का साहित्य समाज का वो चश्मा  है, जिसमें सब नंगे दिखाई देते हैं!!
                                                                            : अमन आकाश :

 पत्रकारिता एवं जनसंचार, अंतिम वर्ष


नोट - "यह लेखक के अपने विचार हैं "
                                                                                                   

       क्या करते 



चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले.....
उनको हमसे मोहब्बत ही न हुयी,
तो हम उनसे इकरार क्या करते,
वो बात करने को राजी ही नहीं,
तो हम उनसे इज़हार क्या करते ! 

नज़रें हर पल ढूंढती है उन्हें दर-ब-दर,
कहीं तो उनका नजारा मिले,
पर जब उनका नज़र आना ही नहीं,
तो अपने नजर को इनकार क्या करते ! 

उतना तो वो मुझसे नफरत भी नहीं करती,
जितना मैं उनसे मोहब्बत करता हूँ,
लेकिन जब उन्हें मेरी चाहत ही नहीं,
तो खुद को ज्यादा बेक़रार क्या करते !

उनको मेरे हाल-ए-दिल की फिकर नहीं,
हाँ मैं हूँ बर्बाद, पर बेखबर नहीं,
जब एक से ही मिली ऐसी बदहाली,
तो और किसी का दीदार क्या करते !

माना उनकी यादों का मखमूर हुए जा रहा हूँ मैं,
अपने बहते आंसू को घूंट – घूंट के पिए जा रहा हूँ मैं,
बखुबन जनता हूँ सब बेकार है उनके लिये,
तो बात-बात पर उनसे तकरार क्या करते  !  

दुनिया बयां करती है मेरी तबाही का हरेक सबब,
सब हँसते हैं देख मेरी तबाही का मंजर,
जब मुझे ही अपनों की खबर नहीं,
तो अपनों को अपना खबर की करते !

बस आखिरी एक शिकवा है उस रब से,
क्यों लिख दी मेरे मुक़द्दर में ऐसी ज़िन्दगानी,
कि उनका मुझसे बात करना भी मुनासिब नहीं,
और हम उनका इंतजार किया करते।।।    

                                                                                -विपुल आनंद