नाटक - उत्तर राम चरितम नाटकार - महाकवि भवभूति
निर्देशक - स्व कावलम नारायण पणिक्कर अनुवाद - उदयन बाजपेयी भाषा - हिंदी
भारतीय रंगमंच में जब-जब संस्कृत नाटक की चर्चा होगी तब-तब स्व कावलम नारायण पणिक्कर साहब नाम इज़्ज़त से लिया जायेगा।
भारत रंग महोत्सव 2017 का आगाज और भारतीय शास्त्रीय संस्कृत
नाटक “उत्तर राम चरितम” दोनों उत्साहित करने वाली बातें हैं और जब दोनों साथ हो तो
उत्साह दुगुना हो जाता है. दिनांक 1 फरवरी 2017 को कमानी सभागार में नाटक “उत्तर
राम चरितम” से 19वाँ भारत रंग महोत्सव का आगाज हुआ. लगभग 70 मिनट के लम्बे उद्घाटन
सत्र के बाद नाटक का पर्दा हटा और नांदी के साथ महाकवि भवभूति लिखित रूपक “उत्तर
राम चरितम” खेलना शुरु किया गया जिसे भारतीय रंगमंच के शीर्ष निर्देशक स्व कावलम
नारायण पणिक्कर साहब ने किया था. यह पणिक्कर साब का पहला हिंदी नाटक था.
खैर, नाटक शुरुआत के चन्द मिनटों में ही अपनी गति खो देता
है जिसके कारण अधिकांश दर्शक कुर्सी छोड़ चले गए महज शुरुआत के 15-20 मिनटों में ही
दर्शकों की संख्या 40% बच गयी. गति का मंद होते हीं कोई भी नाटक मनोरंजन नही कर पाती
है या कम करती है. “उत्तर राम चरितम” भी अछूता नहीं रहा. खैर मुझे इस बात की ख़ुशी है
कि मैं उन 60% दर्शकों में से नहीं था अगर होता तो शायद इस नाटक के कई खूबियों को
देखने से वंचित रह जाता. यह नाटक कई मायने में खास रहा जो पर्दा खुलने के साथ ही अपनी
शैली व नाट्यशास्त्र के अनुकूल होने की तरफ इशारा करती है. नाट्य शास्त्र के
शब्दों में कहें तो नाटक (रुपक) “उत्तर राम चरितम” मुख्य रूप से अंगिक, आहार्य एवं
वाचिक अभिनय से तैयार किया गया जिसमे 3 रस प्रधान थे- करुण, श्रृंगार तथा वीर. नाटक
के कई खास दृश्य जैसे भगवान राम, सीता वनवास इत्यादि दृश्य को चुलीका माध्यम से
प्रदर्शित किया गया साथ ही चुलीका के बाह्य भाग पर चित्र बना कर उस दृश्य को
समझाने का भरपूर प्रयास किया गया. अगर हम इस नाटक की रचना पर बात करें तो नाटक में
कई जगह रस-भाव-कथ्य का समुचित मिश्रण के साथ जहाँ एक ओर मंच संतुलित रहता है वहीँ
दूसरी तरफ हर पल नए दृश्य बिम्ब बनता दिखाई देता है. वीर रस के अधिकांश दृश्य को
कलरी पियाट्टू एवं छऊ नृत्य के तत्व से तैयार किया गया था जो अपने एक ही झटके में
नाटक की गति को तीव्र कर दिया और नाटक पुनः अपने वास्तविक लय में वापस लौट जाता
है. सेट के नाम पर सिर्फ 3 प्लेटफोर्म का इस्तमाल किया गया. इस नाटक का वस्त्र
विन्यास आकर्षक व मुख्यतः सोने-चाँदी के रंगों का प्रयोग शायद इस तरफ इशारा करता
है कि नाटक किसी राजघराने की बात कर रहा है. नाटक का महत्वपूर्ण पक्ष संगीत जिसके बिना
यह प्रस्तुति अधूरी रह जाती मात्र 3-4 साज से पुरे नाटक का संगीत, शास्त्रीय गायन
करना सराहनीय रहा जो बिम्ब के साथ तो चलती ही है साथ ही यह अहसास भी करवाती है कि
दर्शक एक शास्त्रीय नाटक देख रहे हैं. नाटक के कई बातचीत डायलोग बैकस्टेज से आता
रहा. कुल मिलाकर कहा जाय तो यह नाटक एक खास वर्ग के दर्शकों की मांग करती है जिसका
कनरसिया होना पहली शर्त है. बहरहाल यह नाटक देखना मेरे लिए सुखद रहा.
यह आलेख मेरे नाटक देखने के बाद अपने व्यक्तिगत
अनुभव के आधार पर है आपकी राय शायद आलग हो...
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