भारत रंग महोत्सव 2017 का तीसरा दिन
पिंटू के पिता के किरदार में मनोहर तेली |
आज मैंने तीन प्रस्तुतियां देखीं संक्रमण, गबरगिचोरन के माई एवं चेखव चैका. सच कहूँ तो आज का दिन मेरे लिए बेहद सफल रहा. ये ठीक वैसा ही था जैसा मैंने BRM2017 आने से पहले कल्पना किया था. एक ओर जहाँ नाटक “संक्रमण” में एक अभिनेता आपने अभिनय के माध्यम से दो पीढ़ियों की कहानी को कहता है जिसमें एक बुढा बाप अपने बेटे से उनका अनुभव साझा करना चाहता है डालती उम्र की वजह से पिता अपने बेटे के भलाई खातिर उन छोटी छोटी बातों/ चीजों/ ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश करता है जिसपर हमारे पीढ़ी के लोगों का ध्यान नहीं जाता है. बेटा पिता की बातों को भरसक पूरा करने की कोशिश करता है लेकिन कामयाब नहीं हो पाता है नतीजा पिताजी चिरचिरे हो जाते हैं. इसी बीच एक दिन पानी का टंकी ठीक करते समय पिताजी का पैर फिसल जाता है और अस्पताल में लम्बे खर्चे के बाद उनका देहांत हो जाता है. अब बेटे-बाप का प्यार इस प्रकार उजागर होता है कि पिताजी की जो आदतें बेटे को बुरी लगती थीं अब खुद करने लगे हैं. इस प्रकार कहानी अपने शीर्षक तक पहुँचती जाती है. इस नाटक में मुख्य रुप से अभिनय व प्रकाश ही था जो प्रेक्षागृह में बैठे दर्शकों को 70 मिनट मनोरंजन करने के लिए काफी था. जब बात एकल प्रस्तुति की होगी तो बात अभिनय की तो होगी ही. ऐसे में ‘मनोहर तेली’ (निर्देशक व अभिनेता दोनों थे) अपने किरदार को बहुत ही ईमानदारी से मंच पर जीवंत करते नज़र आते हैं. साथ ही बड़ी चालाकी से अपने किरदार को बदल कर लोगों को असमंजस में ला देते है कि पहले वाला किरदार कर रहा अभिनेता ही दूसरा किरदार कर रहा है या नहीं. जब जनाब अपने पिता का किरदार कर रहे होते हैं तो इनका बॉडी लैंग्वेज मंच पर प्रवेश करते हीं बूढ़े की उम्र कम से कम 55-60 वर्ष स्थापित करता है . आवाज़ में काँप-कपी के बजाय इन्होने बोलते समय स्टेज बिज़नस के साथ उठने बैठने में एक दर्द भरी आह का इस्तमाल किया जो इनके उम्र की पुष्टि करती है. डायलाग के साथ स्टेज बिज़नस को इन्होने पुरे नाटक में बरक़रार रखा जो दर्शकों को ध्यान नाटक पर केन्द्रित करने को मजबूर करती हैं. दूसरा किरदार पिंटू जो बहुत उर्जावान है और यही उर्जा का अंतर हीं बेटे की उम्र 30-35 साल के आसपास बताता है. अभिनेता मनोहर तेली ने पिंटू के किरदार की मजबूरियाँ, उलझनें व अंतर्द्वंद को बारीकी से प्रदर्शन करते हुए उसकी खूबसूरती को दर्शकों के सामने रखा. जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि यह नाटक मुख्य रुप से वाचिक अभिनय से समहं जाया गया था ऐसे में अभिनेता की संवाद आदायगी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. संवाद अदायगी में बदलाव के कारण किरदार और निखर कर सामने आता है जिसका जीवंत उदहारण नाटक संक्रमण है. नाटक के तीसरे किरदार माँ (जिसे जीवंत करना किसी भी पुरुष अभिनेता के लिए चुनौतीपूर्ण होता है) जो की बूढी महिला है और इस किरदार में मनोहर साब ने बॉडी में कंप-कपी तथा आवाज़ में मधुरता को जोड़ दिया जो नायटी पहनने के बाद बूढी औरत ही लगती हैं और सबसे ज्यादा चौकाने वाली स्थिति तब उत्पन्न होती है जब पिंटू अपने पिताजी जैसा व्यवहार करने लगता है जहाँ वो उसके पिता से अनंत प्रेम को वो छुपा नहीं पाता है. कुल मिलाकर यह नाटक कई बार देखने में मुझे शायद उबाऊ नहीं लगेगा.
नाटक गबर घिचोरन के माई का एक दृश्य |
यह
आलेख मेरे नाटक देखने के बाद अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर है आपकी राय शायद
आलग हो...
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